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भील जनजाति, शिक्षा और आधुनिकीकरण | ISBN No. : XXXXXXXXXX | अजयसिंह राठौड | Reviewed By : Sunita Baghel, Kamalesh Pal | Published On : 25/02/2013 | Published By : पंचशील प्रकाशन फिल्म कॉलोनी, जयपूर, 1994 | Genre : Adventure | Review : | भील जनजाति , शिक्षा और आधुनिकीकरण " नामक पुस्तक अजयसिंह राठोड द्वारा लिखी गई है । प्रस्तुत ग्रंथ में ८५ पृष्ठ एवं ५ अध्यायो में विभक्त है । शिक्षा समाज में आधुनिकीकरण करने में महत्वपूर्ण कारको में से एक है । इसलिये शिक्षा और आधुनिकिकरन के मध्य आज गहरा अन्तर्सम्बन्ध है । शिक्षा के द्वारा हि व्यक्ति समाज की नई-नई भौतिक तथा अभौतिक वस्तुओ से अवगत है उसके बाद अपनी तर्कशील विशेषता के द्वारा उनकी उपयोगिता का आकलन करके अपने जीवन में आवश्यकतानुसार उपभोग करके आधुनिक बनता है। शिक्षा के बिना हम आधुनिकीकरण की सोच भी नहीं सकते। शिक्षा के अभाव में व्यक्तित्व का विकास तभी होगा जब वह शिखा को न केवल बौद्धिक स्तर पर ही ग्रहण करे बल्कि उसे अपने विचारों व्यवहारे में भी स्थान दे । प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने राजस्थान में भील जनजाति में शिक्षा प्रसार, शिक्षा का महत्त्व तथा शिक्षा के माध्यम से विकास और आधुनिकीकरण के लिए शोधात्मक आवश्यकताओ को कुछ हद तक पूर्ण करने की मुलभुत प्रेरणाओं से अभिप्रेरित यह प्रथम प्रयास है। इनमे उदपुर जिले की कोटड़ा तहसील के बेकरिया ग्राम में भील जन जाति में बदलती हुई परिस्थितियों तथा आवश्यकताओं में शिक्षा-प्रसार की भूमिका, विश्लेषण महत्व और निष्कर्ष को संतुलित, निष्पक्ष तथा वस्तुनिष्ट बनाने के लिए क्षेत्रीय शोध प्रविधियों का प्रयोग किया है। लेखक ने प्रथम अध्याय में प्रस्तावना, शोध के उद्धेश्य, अध्ययन क्षेत्र का परिचय, शोध अध्ययन की प्रविधियाँ आदि का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया है। भील जनजाति का अध्ययन करके उनके सामजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन में शिक्षा का प्रभाव एवं योगदान का विश्लेषण करना, जनजाति में शिक्षा प्रसार की सीमाओं (कमियों) का पता लगाना। शिक्षा ने आधुनिकीकरण के रूप में भील जनजाति के मूल्यों, विचारों, भावनाओं, रहन-सहन, भाषा आदि को कितना व् किस रूप में प्रभावित किया है। लेखक ने द्वितीय अध्याय में भीलों की उत्पत्ती एवं इतिहास का विस्तारपूर्ण विवेचन किया है। भीलों की उत्पत्ति के बारे में कई प्राचीन ग्रंथ कथा का वर्णन किया गया है। भीलों का इतिहास के बारे में प्राचीन ग्रंथों और दन्त कथाओं को छोड़कर जब हम पाश्चात्य विद्वानों का मत देखते है तो उनके विचार से भील इस देश के मूल निवासी है जो कि अपना जीवन इतिहास रखने का दावा कर सकते है। तृतीय अध्याय में लेखक ने भील संस्कृति का सामान्य अध्ययन परिचय का विवेचन किया है। संस्कृति मनुष्य के रहने अथवा जीने का एक तरीका है। जिसका पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण होता है। मनुष्य अपनी संस्कृति के कारण पशु समाज से भिन्न तथा श्रेष्ठ है। इसके साथ-साथ लेखक ने शारीरिक आकृति एवं स्वभाव रहन-सहन और खान-पान, घरों की बनावट, वस्त्र, भोजन, आभूषण, अस्त्र-शस्त्र व हथियार, पंचायत संगठन, जातीय संगठन, परिवार व्यवस्था, विवाह व्यवस्था, विवाह-विच्छेद, उत्सव और त्यौहार, देवी-देवता, शकुन-अपशकुन, कला और संगीत आदि का विश्लेषण किया है। अध्याय चार में लेखक ने भीलों में शिक्षा-प्रसार और आधुनिकीकरण का प्रभाव देखने का प्रयास किया है। प्रस्तुत अध्ययन के अंतर्गत वास्तविक रूप में शोध स्थल से प्राप्त तथ्यों तथा सूचनाओ का उल्लेख किया गया है। इस अध्ययन में उदयपुर जिले की कोटडा तहसील के अंतर्गत, बेकरिया गाँव की भील जनजाति में वर्त्तमान में शिक्षा प्रसार की प्रत्यक्ष व वास्तविक स्थिति का अध्ययन करते हुये, शिक्षा प्रसार के द्वारा विभिन्न पक्षों में हुए बदलाव अथवा परिवर्तन की वास्तविक स्थिति का वर्णन किया गया है। शिक्षा प्रसार ने भील जनजाति के मुख्य निम्न पक्षों जैसे भील परिवारों में शिक्षा का इतिहास, शिक्षा और परिवार, शिक्षा और विवाह, शिक्षा और नातेदारी, शिक्षा और व्यवसाय। अध्याय पांच में लेखक ने सारांश, निष्कर्ष, एवं सुझाव प्रस्तुत किया है। भीलों का अध्ययन करने पर पता चलता है की इन लोगों में शिक्षा प्राय: भिलाना, किसान, बड़े पटेल, जमीदार तथा आर्थिक स्थिति से संपन्न उच्च स्तरीय भील लोग ही प्राप्त करते है। ये लोग अपनी प्राचीन परम्पराओं से इतने ग्रसित है की शिक्षा का प्रभाव इनमे नहीं के बराबर है। निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते है की इस पुस्तक में राजस्थान की भील जनजाति के सम्बन्ध में उनकी उत्पत्ति, इतिहास, रहन-सहन, संस्कार, तीज-त्यौहार, लोकदेवता, शिक्षा तथा परिवर्तन प्रक्रिया को प्रस्तुत किया गया है। लेखक ने प्राथमिक एवं द्वितीयक स्त्रोतों से जानकारियां और तथ्य जुटाए है। जिससे पुस्तक की प्रामाणिकता आदि व्यवस्था में परिवर्तन प्रक्रिया के तथ्यों के द्वारा समझाया है तथा शिक्षा प्रसार को प्रभावी बनाने के लिए सुझाव प्रस्तुत किये है। वर्त्तमान समय को देखते हुए में कहना चाहूंगी कि यह पुस्तक शोधार्थियों एवं जनसामान्य के लिए उपयोगी होगी। | Reference : | "भील जनजाति , शिक्षा और आधुनिकीकरण " लेखक : अजयसिंह राठोड प्रकाशक : पंचशील प्रकाशन फिल्म कॉलोनी जयपुर, १९९४ मुल्य : १००/- |
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