Book Review :
कर्मभूमी
ISBN No. : 81-86311.08.7
प्रेमचंद जी
Reviewed By : Nikhil Agarwal
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Published On : 18/03/2014
Published By : प्रकाशन संस्थान 4715 / 28 दयानंद मार्ग, दरियागंज दिल्ली – 110002
Genre : Story

Review :

प्रेमचंद द्वारा रचित कर्मभूमि बडा रोचक एवं ज्ञानवर्जक उपन्यास है | इस उपन्यास को कर्मभूमि इसीलिये कहा गया है क्योंकी संपूर्ण उपन्यास कि रचना भूमी आंदोलन को लेकर कि गयी है | लेखक के मन पर गरीबों , असहायो एवं अशिक्षित के उपर अमिरो उच्च वर्ग द्वारा तथा संपन्न वर्ग द्वारा एवं संस्कार द्वारा हो रहे अत्याचार कि छवी इस उपन्यास मे प्रतीत होती है | यह उपन्यास मुख्यतः सामाजिक मुद्दो को लेकर लिखा गय है | जहा प्रमुख रूप से शिक्षा के विकास पर बल , सिपाहियों द्वारा महिला कि इज्जत बेआबरू करने के बाद भी महिला को अपने सम्मान (गरिमा) को बनाये रखने के लिये कोर्ट (कचहरी) जाना पडा एवं कचहरी द्वारा महिला को सम्मान व न्याय प्रदान किया गया है तथा साथ हि जातिवाद का मुद्दा जिसमें निम्नजाति से छुआछुत जैसी समस्या को उठाया गया है | जिसके अंतर्गत निम्न जाति का मंदिर मे प्रवेश को लेकर आंदोलन किया गया है | एवं जहा एक तराफ जनता भूख से त्रस्त थी वही धर्म के नामपर आडंबर पर धन को व्यर्थ करना व महनतो कि वर्चस्वता को दर्शाया गया | यहा जहा एक तरफ व्यक्ती का सम्मान खोता है वो पल पल अपमानित (Humilate) होता है | तो वही महिला का रेप होना उसके आत्मसम्मान (Self Respect) का हनन है | मानवीय मुल्यो से जुदा होने के कारण व्यक्ती कि गरिमा (Dignity) का हनन होता दिखाया गया है | इस उपन्यास मे अमरकांत एक मुख्य पत्र है जो काफी बुद्धिमान , आशावादी एवं सामाजिक सेवा से प्रेरित है | अमरकांत अपने पिता के अनैतिक व्यापार निती व पिता से द्वेष के चलते बडा हुआ था | अमरकांत द्वारा वह महिला जिसकी इज्जत पुलिस कार्मियों (सिपाहियो) ने लुटी थी | के सम्मान हेतू आंदोलन किया | जिसके अंत मे उस अबला स्त्री कि विजय होती है | अमरकांत का विवाह सुखदा से हो जाता है जो कि विलासती व पती पर प्रभुत्व रखनेवाली थी | सुखदा से लगाव व प्यार न होणे के कारण अमरकांत सकीना के प्यार मे पड गये | सकीना से विवाह करना चाहते थे परंतु पर पिता लाला समरकांत ने सकीना को अपनी बहु बनाने से मना कर दिया था | तो अमरकांत को किसी का भी प्यार ना मिलने के कारण वो घर-भार छोडकर गाँव-गाँव भटकते रहे | और अंततः अछुतों (Untouchables) के गांव मे जाकर ठहरते है | जहा वे बलाको को पडते है | तथा भूमी लगान विरोधी आंदोलन मे भाग लेते है | जहा उनका दोस्त सलीम सरकारी अधिकारी बन प्रथमतः तो किसानो पर शोषण व अत्याचार एवं मारपीट करते है | परंतु लाला समरकांत द्वारा गलती महसूस करानेपर वह ग्रामीण लोगो से क्षमा मांग उनकी कर माफी आंदोलन मे मदद करता है | सुखद जो प्रारंभ मे अमरकांत को समाज कल्याण हेतू नफरत करती थी अब उसकी भी गलतफहमी दूर हो जाती है और वही सुखदा अब अछुतों के मंदिर प्रवेश आंदोलन कि मुख्य कार्यकर्ता बन जाती है | जिसकी सजा मे वो कारभार (जेल) मे डाल दि जाति है | अंततः अनेको ग्रामिणों एवं नैना के इस आंदोलन मे शहीद हो जाने के साथ हि बोर्ड द्वारा यह कर माफ कर दिया जाता है | और भूमी किसानों को रहने के लिये दे दि जाति है | वह भूमी जिस पर किसान कर्म (कार्य) करता है वही ‘कर्मभूमि’ है जो उन्हे प्राप्त हि जाती है और ग्रामिणों कि जीत होती है | अन्याय पर न्याय कि जीत होती है | कर्मभूमि को मुख्यतः पांच भागो मे बाँटा गया है | जिसमे प्रथम भाग मे 18 अध्याय , द्वितीय भाग मे 7 अध्याय , तृतीय भाग मे 13 अध्याय , चतुर्थ भाग मे 8 अध्याय , एवं पांचवे भाग मे 10 अध्याय है | जिसका वर्णन इस प्रकार है प्रथम भाग :- इसमें पुलिस सिपाहियों द्वारा महिला के रेप के पश्चात महिला कि आत्म सम्मान के लिये आंदोलन कि बात कही गयी है | एवं समरकांतद्वारा सकीना को बहु के रूप मे इन्कार किया गया है | द्वितीय भाग :- आंदोलन को अपमानित (Humilated) नारी सम्मान के लिये किया गया के पूर्ण होने के पश्चात महिला अपनी अपमानित जन्दागी से बचने के लिये किसी अनजान गांव में जाकर मुन्नी के नाम से बस जाती है | वही सुमेर मुन्नी से प्रेम करता है | जो कि स्वार्थ भावना से नही था | जिसमे सुमेर के प्रेम इजहार पर मनाही के बाद भी जब मुन्नी को दर्द उठता है उसे भूत-प्रेत का दर्द समझ तांत्रिक के पास पहुंचने के लिये पानी से चढी नदी मे कुद जान गवा बैठता है | जिस पर मुन्नी सेवा भाव से प्रेरित हो सुमेर को ‘नीचों मे देवता’ कि सज्ञा (उपाधी) देती है | तृतीय भाग :- सुखदा अछूत आंदोलन मे नीचों के प्रति हो रहे भेदभावो के प्रति मुख्य कार्यकर्ता बन उभरती है | और हडताल (धरने) के विरोध मे जेल कि सजा भोगती है | एवं सुखदा अपने पती के प्रति सभी शंकार , गलतफहमियाँ दूर हो जाती है | चतुर्थ भाग :- सलीम ICS पुलिसकर्मी (अधिकारी) बनकर गांववालो से लगान वसुली के लिये ग्रामिणों , असहायों पर अत्याचार करता है | तो वही समरकांत द्वारा गलती का एहसास दिलाने पर अपनी गलती महसूस कर सरकार को वास्तविक रिपोर्ट भेजता है | एवं नौकरी पर राहते हुये अमरकांत से दोस्ती निभते हुये कैदियो कि तरह व्यवहार न करके सम्मान्पुर्वक हिरासत में लेता है | पांचवा भाग :- इसमें पुलिस सिपाहियो द्वारा महिला से पुनः रेप का वर्णन है एवं इसमे कर माफी आंदोलन (हक आंदोलन) काफी उग्र होता है | और गिरफ्तारियों का भी वर्णन है एवं अंत मे नैना देवी के बलिदान के बाद गांववालों को उनके हक कि जमीन उन्हें प्राप्त होती है | आलोचना :- a) इस पुस्तक (उपन्यास) के अंतर्गत की ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जिससे पाठक को पडते वक़्त इतनी शुद्ध व क्लीष्ट भाषा का अर्थ समझने मे दिक्कत का सामना करना पडेगा जैसे – कें – उल्टी b) जुहार –लडाई c) आसबाब – समय आदी लेखक को आसान शब्दों का प्रयोग करना चाहिये | B) तथ्यो मे अंतर है जहा पृ. संख्या 246 में आंदोलन मे 25000 आदमी बताये गये है वही उसी आंदोलन में पृ. संख्या 251 पर रेणुका एक लाख आदमी बताती है | C) लाला समरकांत पौजे के जन्मदिवस व कार्यक्रम पे जब नाच गाने कि बात करते है तब वह कहते है कि शादी-विवाह मे तो रंडिया नाचती है |” इस प्रकार वे नारी जाति का अपमान Humilate करते है | D) पुरुषो कि वर्चस्वता को दिखाते हुये महिलओं को भोग , विलासता समझते हुये लाला मीराम स्त्री को काम निकलने का साधन मानते है | वही सलीम ने भी सकीना को दिल्लगी (दिलचस्पी) सुखभोग का साधन मानकर नारी जाति का अपमान किया है | E) लाला समरकांत बोर्ड से जमीन प्राप्त करने के लिये काम निकालने के लिये भ्रष्टाचार (रिश्वत देने)कि बात करते है जो कि काम निकालने का जुगाढ है और इमानदारी को ठेस पहुंचाना है | निष्कर्ष :- मेरी समझ से यह उपन्यास सामाजिक स्थिती का आयना दिखता है | जिसमे सामाजिक उद्देशों को लेकर रचा गया है | जैसे- सिपहियों द्वारा रेप कोर्ट प्रथा द्वारा न्याय मिलना जिसको आत्म सम्मान कि लाडाई करार दिया गया है | जाति आधार पर मंदिर प्रवेश आंदोलन | वही अधिकारियों द्वारा ग्रामिणों पर किया जा रहा अत्याचार एवं भूमि लगान माफी आंदोलन जैसी जमिनी मुझे को लेकर रचित है जो सामाजिक मुद्दे है | अतः यह पुस्तक काफी रोचक और ज्ञान से पूर्ण है | यह आवश्य है इसकी आलोचना भी है जहा तथ्यो मे कर्म है , नारी को अपमानित किया गया है | जिससे रचना को समझने मे कठीनाई उत्पन्न होती है | अतः ये पुस्तक ऐसे सामाजिक मुद्दो को लेकर लिखी गयी है | जिसको पढने से ज्ञानवर्धन होगा रुचीपुर्वक सामाजिक स्थिती कि बेहतर जानकारी प्राप्त करणे कि जिज्ञासा उत्पन्न करने मे यह पुस्तक काफी लाभदायक सिद्ध होगी |

Reference :

पुस्तक का नाम – कर्मभूमी लेखक – प्रेमचंद जी प्रकाशक – प्रकाशन संस्थान 4715 / 28 दयानंद मार्ग, दरियागंज दिल्ली–110002 संस्करण–2002, ISBN No – 81- 86311.80.7.

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